बिहार राज्य की मुस्लिम आबादी लगभग 17 प्रतिशत के आसपास है और यहाँ के 13 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ मुसलमानों की आबादी 18 से 44 फ़ीसद के बीच है. किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में तो 69 फ़ीसद मुसलमान हैं.
इन इलाक़ों में हिदू और मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण कराके वहाँ भाजापा ने अपना झाड़ा गाड़ा है, और इसका फायदा हमेशा भाजपा को ही मिला है.
यानी बिहार में भाजपा वहीं मज़बूत है, जहाँ मुस्लिम आबादी ज़्यादा है।
इस बात से यूपी वालों को सबक़ लेना चाहिए अभी उनके सर पे इलेक्शन हैक्योंकि वहाँ मुस्लिम आबादी बिहार से कहीं ज़्यादा है।
2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी की 'ख़ास छवि' के कारण यह ध्रुवीकरण और ही बढ़ गया था
भाजपाई ख़ेमे को पहले ही पता चल चूका था के नरेन्द्र मोदी के रास्ते का 'नीतीश रूपी रोड़ा' हट चुका है उस से हमें कोई ख़ास नुक्सान नै होने वाला है ,इसी लिए वो मुत्मइन थे ,
मगर नितीश कुमार ने अपने ख़ास अंदाज़ में सेक्युलरिज़्म और धर्मनिरपेक्षता का जो नकली चादर ओढ़ कर बिहार में गेम खेला जिसकी वजह से मोदी और अमित शाह की जोड़ी समझ ही नहीं पायी और धारा शाही हो गई।
बिहार में २०१४ के इलेक्शन में मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने में नीतीश कुमार ने जिस तरह 'नरेन्द्र मोदी का हौवा खड़ा किया था और उसका विरोध' करना शुरू करदिया था अब उसकी पोल खुलती नज़र आरही है, क्योंकि उन्हें ये भी डर भी सताने लगा है के उनका भाजपा से सम्बन्ध भी न टूट जाये इसी लिए सेक्युलरिज़्म का नाटक छोड़ आजकल भाजपा बिर्गेड से मिलना जुलना बढ़ गया है।