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Friday, September 13, 2013

वो दूर हो गया है मुझ से आसमां की तारह 
मैं ढूंढ रहा हूँ उसको अनदेखे निशान की तरह 
उसके आने से ज़िन्दगी में बहार आगई थी
बिछड़ गया फिर वो किसी मेहमान कीतरह
ज़िन्दगी भर मैं शायद उसे भूल न पाऊँ
बैठ गया है दिल में मेरे ईमान की तरह
मैं गया था उसके घर एक मेहमान की तरह  
खुश तो हुआ बहुत मगर बेजुबान की तरह
बातें उसकी ज़ेहन में हमेशा मेरे नासिर  
गूंजती रहती हैं किसी आजान की तरह 

अपनी बेबाकी में बहुत मशहूर हूँ मैं


अपनी बेबाकी में मैं बहुत मशहूर हूँ
इसी लिए तो आज अपनों से दूर हूँ

मेरी जुबान काट डोज तो कलम बोलेगा
अपने कबीले का मैं बहुत गय्यूर हूँ

सच कहना मेरी फितरत में शामिल है
क्या करू इस लिए तो मैं मजबूर हूँ

मेरी सच्चाई ही मेरा असासा है नासिर
मैं बस इसी काम का मजदूर हूँ

डूब जाता है अगर ज़ुल्म का सूरज
तो डूब के फिर से निकलता क्यं है 
अगर तुझे चलने का हुनर आता है
तो फिर हर मोड़ पे फिसलता क्यूँ है
तंग होगया हूँ मैं आज अपने इस आज़ादी में
लौटा दो कोई मुझे मेरे बचपन की वादी में
सुनी सुनाई बात नहीं इस बात में सच्चाई है
ज़हरभरा माहौल बना है आज हमारी आबादी में
आपस में लड़ते हैं मंदिर मस्जिद की खातिर
संघी है कोई, तो किसी का नाम है जिहादी में
दुश्मन जिसको समझते रहे हम अपने मोहल्ले का
आज उसी ने साथ दिया मेरी बिटिया की शादी में
हर बात में मेरी दहशत गर्दी का नारा लगते हैं
क्यूँके मेरा नाम लिखा जा चुका है आतंकवादी में
भारत की सब बात करें पर भरत यहाँ कोई नहीं है
नासिर अपना कोई नहीं तू चल अपनी समादी में

अच्छा लागता है

 تیراملنااب مجھےاچھا لگتا ہے
کچھ کچھ تو میرے جیسا لگتا ہے
کوئی کہے چمن کا گلاب تجھے
اورمجھکو گلاب تیرے جیسا لگتا ہے
بہنے لگا ہےتو رگوں میں خون بنکے
تجھ سےبچھڑنااب مرنےجیسا لگتا ہے
کیسا رآستہ یہ تم نےچن لیا ناصر 
منزل پہ آ کے بھی راستے جیسا لگتا ہے
دھڑکتا ہوا ہر مجبور کےسینےکادل
ناصراب مجھ کو اپننے جیسالگتا ہے
کر گیا وہ گھائل اپنی میٹھی زبان سے
میں پچھتایا بہت اپنےاس نقصان سے 
ایک شیکاری نےکرلیاشکاراس پرندےکا
سننا تھا آج اس طائرے خوش الحان سے
 
کیا سینےمیں اسکےدھڑکتا نہیں ہو گادل
ماردیتا ہےجو کسی بھی بےقصورکوجان سے
اس نےشوق جنوں کےعالم میں کھالیا پان
ہو گیا گھائل منہ اسکاڈبل چونےکےپان سے
سچ کہنے کی ہمّت آج اس نےدکھائی ہے 
لگتا ہے ناصر آج وہ جائےگا اپنی جان سے

बेटी की वोदाई

घर से बाबुल की में तो सफ़र में चली
घर हुआ अजनबी वह जहां  में पली
जब बिचादने की मेरी वो आई घड़ी
अपने घर में ही पराया सी लगने लगी
क्या बताऊँ अपनि विदाइ का हाल
सबकी आँखों में आंसू का फैला था जाल
मेरी आँखों से आँसू फिर रुक न सके
मुड़ के जो देखा फिर माँ ने मुझे
थे पराये मगर लोग अपने लगे
खुश रहने की दुआ सारे देने लगे
घर बाबा के आखिर में छोड़ना पड़ा
अपनी सहेलियों से मुंह मोड़ना पड़ा
फिर चिली में एक ऐसे जहां के लिए
अजनबी थी मैं बिल्कुल वहाँ के लिए
कहते हैं के मैका बेटी का होता नहीं
मगर पराये के लिए तो कोई रोता नहीं
फिर क्यों विदा इ पे मेरे सबसे रोने लगे
ग़मज़दा क्यों मेरी वजह से होने लगे
बाबा ने वक़्त रुखसत यह मुझसे कहा
सलामत रहे मेरी बेटी वहाँ तू सदा
खुशियां चूमे कदम तो जो,जाए जहां
दुनिया भर की खुशियां दे मालिक वहाँ
सारी सखियाँ फिर गैरों से तकती रही
ऐसा लगता था जीसे के मैं मर ही जाऊँ वहीं
बचपन से था रिश्ता सब टूट गया
मेरे बचपन का घर मुझ से छूट गया
ये रीत है इसको निभाना पड़ेगा
घर से बेटी को बाबुल के जाना पड़ेगा
अपने बाबुल के घर की मैं धुवां हो गई 
ज़िन्दगी मेरी नासिर फिर रवां हो गई 
कभी डूब जाता है अपनी किरणों के साथ
डूब के सूरज की तरह फिर से निकल जाता है
वो इस क़दर माहिर है अपने फन में नासिर 
बातों में अपनी उलझा कर साफ़ निकल जाता है

चलो एक बार

चलो एक बार मिलके ये जताया जाए
हमारी एकता को ज़माने में देखाया जाए
भड़कती जा रही है जो नफरतों की आग
चलो उस आग को मिलके बुझाया जाए
यूं तो सजदे किये हैं हम ने बहुत लेकिन
आज किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
कड़ी धुप में उठा ता रहा वो बिझ अपना
चलो किसी ग़रीब का हाथ बटाया जाए
सर्द रातों में सिसकता रहा मासूम का दिल
किसी यतीम के सर पे हाथ घुमाया जाए
 
हमारे शहर में भूके बहुत हैं नासिर
चलो किसी भूके को खाना खिलाया जाए
अब इंसानॉ के जान की कोई कीमत नहीं रही
अफ़सोस के आज हमारे बीच मुहब्बत नहीं रही
रही न अब भक्ति किसी हिन्दू के अन्दर याहां
और किसी मुस्लिम के अन्दर अकीदत नहीं रही
मारते रहे यहाँ एक दूसरे को सब काफ़िर कहके 
तो दुसरे के आँख में भी कोई मोरव्वत नहीं रही 
बहाके के खून खुश होते है इंनसान का यहाँ 
यहाँ इन्सान तो हैं मगर इंसानियत नही रही
फूलों की दूकान पे बिक रहे हैं हथ गोले
आज इन फूलों की भी कोई कीमत नहीं रही 
एक दुसरे के दिल मे भड़क रही हैं चिंगारियां
राम सिंह और शेर खान की मुहब्बत नहीं रही
सियासत के नाम पर लड़ाया जाता है नासिर
आज कल नेता तो हैं मगर सियासत नहीं रही

हालाते ज़िन्दगी

बना के हमें मुर्गा हेमें हलाल करदेंगे
अब तो हमारे नेता जी कमाल कर देंगे
आज अपने भाषण में नेता जी ने कहा है
इलेक्शन के बाद सब को मालामाल करदेंगे
सब ज्जनते हैं इन नेताओं की फितरत
कर के वादा इस देश को कंगाल कर दें
आज की ये सियासत भी कैसी सियासत है
ऐसा लगता है के नेताओं की ये रियासत है
मशकूक है हर लीडर का आज किरदार यहाँ 
हर तरफ है फैला हुआ आज भ्रस्टाचार यहाँ
सयासी कुर्सी पेबैठ के करें सौदा ईमान का
ज़रासी भी फक्र नहीं इन्हें किसी की जान का
इनका तो बस सपना है सब माल हमारा हो
उजाले में हो घर अपना हर सू अँधेरा हो जाए
चमकती सड़क के नाम पे ये हम से मांगें वोट
काम निकल जाने पर करें ये दिल पर चोट
चारों तरफ लूट मची है नही है मोरव्वत कोई
अपने ही घर लूटें अपना नहीं है लज्ज़त कोई
आपस में हम लड़ बैठे हैं नेताओं की चक्कर में
पिस रहें हैं हम दोनों आपस के इस टक्कर में
बैठे बैठे मैंने सोचा आज कुछ ऐसा कर जाएँ 
नासिर अपना जीवन समाज के नाम कर जाएँ
सलाम तुझ पर ऐ मोहाफिज़े मिल्लत अस्सलाम
सलाम तुझ पर ऐ बानिये वहदत अस्सलाम
सलाम तुझ पर के जिसने जान तक कुर्बान की
सलाम तुझ पर के जिसने परवाह न की जान की
जिसके नाम का खौफ दुश्मन पे यूं तारी हुआ
ऐसा सिपाही जो अपने दुश्मनों पे भारी हुआ
देश के नौजवानों को देश प्रेम का पाठ पढाया
देकर अपनी जान मुश्किल घडी से हमें बचाया
तेरी बहादुरी का चर्चा हम उम्र भर दोहराएंगे
आने वाली नस्लें तुम्हारी बहादुरी को दोहराएंगे
कमी रहेगी देश को तुम्हारी ऐ शहीद अब्दुल हमीद
सलाम करता है तुझे नासिर ऐ शहीद अब्दुल हमीद
 —
ये सियासत बहुत गन्दा है साहब
मगर यही क्या करें धंदा है साहब
कल जिसने बे गुनाहों को मारा था 
अपने ही कबीले का बन्दा है साहब
अपनी जिम्मेदारियों से ऐसे वो भाग रहे हैं 
कहने पे आयें तो ये कहदें सारी बात
इन आंसुओं की कोइ जुबांन नहीं है
अब ये देश आज़ाद होगया है नासिर 
जो चाहो करो ये वो हिन्दुस्तान नहीं है
अपनी जिम्मेदारियों से ऐसे वो भाग रहे हैं 
के अपनी कुर्सी को ही वो अब त्याग रहे हैं 
आज के इस हादसे ने डरा दिया है सबको
बरसों से जहां एक साथ लोग बाग रहे हैं
कुछ लोगों ने फैलाया है ज़हर हमारे बीच !
हमारे बीच में छुपे बैठे कुछ नाग रहा है !!
मशहूर है संस्कृति जहां की दुनिया भर में 
उसी देश में एक दुसरे से सब भाग रहे हैं 
हालात ने उडादी है आँखों की मेरी नींद
चैन की एक पल केलिए हम जाग रहे हैं
इस दुनिया में लाख मैं मशहूर हूँ साहेब
लेकिन वतन से अपने तो दूर हूँ साहेब
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यूं तो देखाने के लिए मैं हंसता बहुत हूँ
मगर एक ख़ुशी के लिए तरसता बहुत हूँ
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पर्देसिओं की ज़िन्दगी भी एक मुसीबत है
मगर क्या करें हम यही हमारी किस्मत है
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ख़ुशी की एक घडी के लिए हम सब तरसते हैं
हमारी आँखों में बस ख्वाब ही ख्वाब बसते हैं
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मगर इन ख़्वाबों की कोई ताबीर नहीं होती
ख्वाब के अलावा अपनी कोई जागीर नहीं होती
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कभी तन्हाई में बीते लम्हे जब याद आते हैं
आँखों से मेरी नींद और मेरे चैन उड़ जाते हैं
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सोचता हूँ अक्सर ये ज़िन्दगी कैसे गुज़रती है
हमारी ज़िन्दगी भी क्या खेल हम से करती है
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यूं तो मिलना बिछड़ना दस्तूर है ज़माने का
मगर जल के मर जाना किस्मत है परवाने का
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पर्देसिओं बीवी के चेरे से उसका दर्द यान होता है
सोहागन हो के भी विधवा सा गुमान होता है
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दुनिया में ऐसा भी नाकोई मजबूर हो यारब
कोई भी इस तरह अपनों से न दूर हो यारब
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याद आता है बिछड़ने की घडी मुझको
बहुत बेचैन करदेता वो घडी मुझ को
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कुछ चुनिन्दा रचनाएं

मैं शर्मिन्दह हूँ ऐसी आज़ादी पर
अपने कौम की ऐसी बर्बादी पर
इस देश में कोई आज़ाद नहीं
कौन है जिस पर उफ्ताद नहीं
हर शख्स यहाँ मासूम बना है
पर सब का हाथ ख़ूँ से सना है 
इंसानियत यहाँ पर शर्मिंदा है 
इंसानियत का कातिल क्यूँ ज़िनदा है 
कौन सुने सच्चाई की बात
लगाए बैठे हैं यहाँ सारे घात
चैन से कोई यहाँ सोता नहीं है 
खुलके यहाँ कोई रोता नहीं है 
हर बेटी की इज्ज़त खतरे में है
जैसे कोई बीच अंगारे में है 
किस से बांटे हम अपना ग़म
सबकी आखें यहाँ पे है नम
संभाले कौन हालत को नासिर 
बचाते हैं सब इस बात से नासिर
इन चिरागों से अपने घरों को सजाया जाय
किसी के घर को चिरागों से न जलाया जाए
मज़हब हमें सिखाता है फ़क़त प्यार बांटना 
मज़हब की आड़ में नफरत न फैलाया जाए
इस्लाम ने फ़क़त दरसे अखुव्वत दिया हमें
अब राम के नाम पे धब्बा न लगाया जाए
बहुत सियासत होगया मज़हब के नाम पर
अब सिर्फ मुहब्बत का पाठ पढ़ाया जाए
ये सियासी पार्टियां हमारी दुश्मन हैं नासिर 
ऐसी पार्टिओं को ही क्यूँ न भगाया जाए
अपनि तहजीब को यूं नीलाम नहीं होने देंगे
फिर अपने वतन में क़त्लेआम नहीं होने देंगे
हमारे मुल्क की रफ़्तार हमारी जीनत हैं 
यहाँ कभी हम ट्रेफिक जाम नहीं होने देंगे
हमारी एकता ही हमारी तहजीब है लोगो
इस एकता को कभी हम बदनाम नहीं होने देंगे
तुम्हे करनी है सियासत तो भले करो तुम मगर
हम अपनी एकता को कभी नीलाम नहीं होने देंगे
हिलाके रख् देंगे दुश्मनों के ऐवानों को हम
मगर इसका दरहम बरहम नेजाम न होने देंगे
हल कर लेंगे खुद ही अगर हो कमी किसी में 
मगर अपने घर को सराए आम नहीं होने देंगे
अपनी रंजिशों को खुद ही हम दूर कर लेंगे
मगर अपने मुल्क को वेयात्नाम नहीं होने देंगे
अगर पड़ी ज़रुरत तो खून से नहला देंगे इसे
मगर अपने देश को बदनाम नहीं होने देंगे 
खुदा करे हमारे मुक़द्दर का सूरज चमकता रहे
इस सूरज का कभी हम शाम नहीं होने देंगे
बड़ी मुश्किलों से मिली है हमें येआज़ादी नासिर 
फिर अपने देश को कभी गुलाम नहीं होने देंगे 
चलो आज मिलके ये वादा करें हम ,,नासिर
भ्रस्ट नेताओं को कभी बेलगाम नहीं होने देंगे
इस तरह हर ख़ुशी से नाता मैं तोड़ आया हूँ
जिस दिन से अपने घर को मैं छोड़ आया हूँ
परदेस का ज़िन्दगी भी भला कोई ज़िन्दगी है ?
असली ज़िन्दगी तो मैं बहुत पीछे छोड़ आया हूँ
जलाके रख दिया चिराग़ घर के सामने मैं ने 
और हवा के रुख को अपनी तरफ मोड़ आया हूँ
वफ़ा की चाह में मैं भटकता रहा दर बदर नासिर
देखा जहां ज़रा सी मुहब्बत मैं वहाँ दौड़ आया हूँ
लूटा है हर किसी ने हमें नया ख्वाब देखा कर
कभी चश्मा देखा कर कभी तालाब देखा कर
सुनहरे बाग़ के सपनों में पहले खूब घुमाया
और बह्ला दिया बहुत दूर से गुलाब देखा कर
फिर बीत गई बरसात मगर तुम नहीं आये
करनी थी तुम से बात मगर तुम नहीं आये
सपनों के इस आँगन में देखा तुम्हे अक्सर
हमें मिलन था कल रात मगर तुम नहीं आये
जीवन के इस मोड़ पे तुम छोड़ गए तनहा 
रस्ता देखा दिन रात मगर तुम नहीं आये
न तुम आये न तुम्हारी कोई खबर ही आई
आँखों से होती रही बरसात मगर तुम नहीं आये
तुम्हारे इंतज़ार में नासिर बीत गया मौसम
सब मेरे सो गए जज़्बात मगर तुम नहीं आये