कहते हैं कि एक न एक दिन हर बिछड़ा हमेशा के लिए मिल जाएगा,
लेकिन उसका क्या जो किसी न किसी हालात के तहत अपना घरबार अपना सब कुछ छोड़ कर परदेस जा बसा, और सार दो साल बाद छुटियां बिताने के नाम पर चंद सांसे अपनों के साथ बिताने चला आता है, लेकिन हक़ीक़त में उसका दिल कभी भी इस खुशी से सैराब नही हो पाता, क्योंकि आखिर उधार की सांसें कितना सकूंन दे सकती है? छुट्टियों पर आने से पहले ही जाने का दिन मुकरर हो जाता है।
जवानी के दिन का निकला घर आया तो शादी हुई फिर बच्चे किस्तों में हुए, उनके साथ भी जी भर के अपना प्यार नही लुटा पाया, बच्चा जब तक अपने बाप को पहचानता है तबतक छुट्टियां खत्म हो जाती है, दुबारा आया तो बच्चा दौड़ने भागने लगता है, और इसी तरह एक एक करके दिन काट जाते हैं, और जब रिटायरमेंट का समय आता है तो बेटा जवान हो कर खुद रोज़ी की तलाश में बाहर चला जाता है।
बीवी बूढ़ी और कमज़ोर तरह तरह की बीमारियों का ढेर हो जाती है।
बस यही है एक परदेसी की ज़िंदगी।