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Saturday, December 24, 2016

मुस्लिम और उसका ईमान

एक रिवायत है , के शाही मस्जिद के सामने एक भिकारी बैठा लोगों से भीक माँगा करता , 
एक रोज़ एक अँगरेज़ अफसर आया, उस भिकारी ने उस से कुछ पैसों का सवाल किया , 
उस अफसर ने अपने बटुवे से कुछ पैसे निकाल कर उस भिकारी को दिए ,इसी बीच गलती से उसका बटुआ गिर गया और वो भिकारी को मिला ,
उस भिकारी ने उसे बहुत तलाश किये , पर वो अँगरेज़ न मिला। 
वो भिकारी उस बटुवे को संभाले रखा लगभग एक सात बीत गए , 
फिर अगले साल वो अँगरेज़ उस मस्जिद में सैर को आया , भिकारी ने उसे देखते ही कहा सर ज़रा ठहरिये आप का कुछ सामान मुझे लौटना है ,
वो भागा भागा घर गया और वो बटुआ जिसे एक साल से संभाल के रखा था , ले आया और उस अफसर को दिया , वो अफसर बड़ा हैरान हुआ, वो कभी अपने बटुए को देखता और कभी उस भिकारी को ,
फिर कहा के अरे तुम एक भिकारी हो, और तुम्हे पता है मेरे इस बटुए में हज़ारो पोंड्स पड़े हुए थे , तुम चाहते तो इस से अपना कारोबार सेट कर सकते थे , अपने ज़रुरत की सारी चीज़ें खरीद सकते थे ? मगर तुमने इसे पुरे एक साल संभाल के रखा?
तो उस भिकारी ने बड़ा ही खूबसूरत जवाब दिया ,
सर कल क़यामत के दिन आपके नबी हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम मेरे नाभि मुहम्मदुर रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम कहेंगे के मेरे एक उम्मती का बटुवा गिर गया था , और आपके उम्मती ने उठा लिया था और उसे लौटाया नहीं , तो उस वक़्त हमारे नबी कितनी शर्मिंदह होंगे ,
जनाब मैं भिकारी हूँ बेगैरत नहीं , मेरी गैरत ने मुझे रोक लिया।
ये गुलामी के दौर की कहानी है ,और आज हम आज़ाद होकर भी मस्जिदों से हमारे जुटे चोरी हो जाते हैं।, हमारा ईमान कहाँ हैं , हम किस ईमान का दावा करते हैं,

#Bihar_will_rise_from_its_ashes

#बिहार, जो सम्राट अशोक और शेरशाह सूरी के बिछाए राजमार्गों के लिए मशहूर था हमारा अपना बिहार,
और जो बिहार कभी शिक्षा और संस्कृति की धरोहर के रूप में जाना जाता था ,ऐसा लगता है के वो बिहार आज अपनी ज़िन्दगी की आखरी सांसें गिन रहा है,
बिहार के साथ प्रॉब्लम ये है कि उसने अराजक होने को ही अपना स्वभाव अपनी आदत मान लिया है
और यह अराजकता अब उसके जीवन का हिस्सा बन गई है.
तुअज्जुब तो ये है कि आज यह अराजकता बिहारियों के लिए गौरव का विषय बना हुआ है.
आज गांव में बसा हुआ बिहारी अपनी दुर्गति को नियति मान बैठा है.
सुशासन और विकास के दम भरने वाले महापुरुष अपनी सियासी चक्की में लोगों का विश्वास का गला घोंट रहे हैं।
आज़ादी के समय के बिहार को याद करें. और आज़ादी के समय ही क्यों, उसके बाद भी लोहिया -जेपी के आंदोलनों के बिहार को देखें....
लेकिन आज बिहार ने बदलाव की उम्मीद ही छोड़ दी है.
आज भी अगर बिहारी एक बार बिहार में बदलाव की बयार के लिये सोच भर ले, तो यकीन मानें, तस्वीर बदल जाएगी.
कुछ ऐसा ही सपना लेकर हमारे बीच मोहम्मद शहाबुद्दीन साहब ने भी इंट्री मारी थी , पर इन बिहार में बैठे सत्ता के गिद्धधों की गिद्ध नज़र लग गई .और कुछ अबूझ सहकर्मीयों की वजह से सत्ताधारी मगरमछों के बिछाये जाल में फंस गए ,
हमें आशा है और एक बहुत पुरानी कहावत के मुताबिक़के बिहार में इतनी शक्ति है के वो अपनी राख में से उठ खड़ा होगा.