सच बोलूं तो पत्थर चले मुझ पर
झूट बोलूं तो खुद पत्थर हो जाऊं
आ समेट लूँ तुझे अपनी आगोश में
डूबा लूँ खुद में और समंदर हो जाऊं
तुझसे बिछड़ के अब लगता है मुझे
जिस्मो जान से मैं अब बेघर हो जाऊं
मेरी ये शादाबी तुम से है नासिर
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तू अगर न हो तो मैं बंजर हो जाऊं