रखना क़दम यहाँ पे अब सभाल के |
होते हैं फैसले भी यहाँ देख भाल के |
इन्साफ चाहिए तो क़दम को बढ़ाइए |
होता नहीं हर फैस्ला सिक्का उछाल के |
पासों ने बदलदिया इन्सान का ज़मीर |
तरीके बदल गये हैं अब बोल चाल के |
फ़ोकट की शायरी से हासिल नहीं है कुछ |
लगिए अब फ़िक्र में ज़रा अहलो अयाल के |
होगए बुज़ुर्ग आप अब तस्बीह उठाइये |
छोडिये अब चक्कर हुस्नो जमाल के |
शुक्रिया है आपका वो तोहफा मुझे दिया |
रख दीया है आपने कलेजा निकाल के |
हालते ज़िन्दगी ने अब करदिया है तनहा |
वरना थे नासिर आदमी हम भी कमाल के |
I'm a Product
Monday, September 16, 2013
अपने इस ख़यालों को दूर फेकता क्यूँ नहीं |
खुदा मौजूद है हर जगह तू देखता क्यूँ नहीं |
इंसानों के दिलों को तू जोड़ता क्यूँ नहीं है |
शिवालों मस्जिदों को तू छोड़ता क्यूँ नहीं |
यहाँ गरीबों के क़त्ल का चर्चा भी नहीं होता |
अमीरों छींक भी आये तो छप जाता है प्रेस में |
बचके रहना घुड़सवारो तुम अपने मैदान में |
आगई है लोमड़ी यहाँ घोड़ों की रेस में |
मुज़फ्फर नगर गोधरा मुंबई और गुजरात |
होने लगे हैं ये सिलसिले कैसे हमारे देस मे |
शैतान भी शर्माए ऐसा काम तुम्हारा है |
शैतान घूम रहां है यहाँ इंसानॉ के भेस में |
लोकल ट्रेन को छोडिये ज़माना हुआ है फास्ट |
नासिर टिकट कटाइये अब चेन्नई एक्सप्रेस में |
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