आज ईद-उल-फ़ित्र है, लोग मुबारकबाद देंगे
गले मिलेंगे, पर कई सवाल है जो आज भी मुझे परेशां किये हुए है "क्या वो लोग भी ईद की खुशियाँ मनाएंगे ? जिनके मासूम बच्चे जिनका इस ज़ालिम समाज से कोई लेने देना नहीं था ज़ालिम इसराइलियों के हाथों शहीद हो गए ?
जिनका एकलौता बेटा नाजायेज़ ,मरा गया
जिनकी माएं बहने किस अनजान ग़लती किन वजह से क़त्ल कर दी गयीं
जो बच्चा यतीम होगया
क्या अपने मुल्क में सुकून से रहने का उनका कोई हक नहीं ?
.क्या आज से इस्राइली अपना जारेहाना ज़ुल्म बंद कर देंगे ?
नहीं ऐसा नहीं होगा वो करेंगे क्योंकि उन्हें बस यही आता है.
कोई कहे न कहे मैं किसी को ईद मुबारक नहीं कह सकता
उस ज़ुल्म की दास्ताँ को नहीं भूल सकता जब कोई मासूम बच्चा अपने घर में खेल रहा होता है , तभी कहीं से कोई राकेट आग का गोला आकर उसके पुरे घर को आग के हवाले करदेता है
और दुनिया एक तमाशे की तरह हमारे ज़ुल्म को देखती रही
ये एक ऐसा ज़ख्म है जो शायद कभी न भर सके ,