चल ले चल अब अपनी नाव ले चलें समन्दर के उस पार अपने गांव ले चलें बहुत दिन हुए अब हमें अकेला रहते सपनों से अपने दूर इस शहर में रहते चल तुझे फिर उस ठण्डी छाँव ले चलें कुछ दिन तो जी ले अब अपना जीवन अब राह निहारे तुम्हे अपना घर आँगन हिम्मत कर उठा क़दम अब पाँव ले चलें अपनी बूढी माँ के था आँख का तारा तू ही तो था अब्बा के लाठी का सहारा चल चूम ले जन्नत माँ के पाँव ले चलें तूने देख लिए ये कैसे कैसे सपने जहां पे न हों कोई भी अपने फिर भी तू जिए जा रहा था अपने आंसू पिए जा रहा था चल फिर जहां है ठण्डी छांव ले चलें वल ले चल अब अपनी नाव ले चलें,