Nasir Siddiqui
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Sunday, December 18, 2016
इस अनमोल ख़ज़ाने को खोउँ कैसे ,
इस अनमोल ख़ज़ाने को खोउँ कैसे ,
तू बसा है ख्यालों में ,तो सोऊँ कैसे ,
दर्द रह रह के उठता है तेरी जुदाई का
अब तू ही बता तेरी याद में रोऊँ कैसे ,
दिल है के बेवफा तुझे मानता ही नहीं
मगर ये बेवफाई का दाग मैं धोऊं कैसे
जानां,एक बार तो आजाते
जानां,एक बार तो आजाते
कुछ सुनते और सूना जाते
तेरा रंग रूप सब मेरे लिए हैं
एक बार तो मुझको जता जाते
अब बीच हमारे मीलों का रस्ता
इन फासलों को तो मिटा जाते
दिल को क़रार तो मिल जाता
ख्वाबों में सही ,तुम आ जाते
ये घर गालियां सब रस्ता देखें
एक आस की डोरी बंधा जाते
जानां, एक बार तो आजाते
बीच मंझार में बन्दों का वो मदगार बना देता है
बीच मंझार में बन्दों का वो मदगार बना देता है
हमारा रब , तिनको को भी पतवार बना देता है
ऐतबार तो कर के देखो मेरे रब्बे करीम पर तुम
आतिशे नमरूद को भी, वो गुलज़ार बना देता है
देता है बे इन्तहा वो जब चाहे जिसे चाहे
लेने पे आये तो दरदर का तलबगार बना देता है
उनकी भी मुझपे नज़र तो होगी ?
उनकी भी मुझपे नज़र तो होगी ?
कोई तो ऐसी एक सहर तो होगी ?
मैंं तनहा सही पर कोई है मेरा भी
कभी न कभी उसे खबर तो होगी ?
ये जो ख़याल उनका मुझको इतना
कुछ उन्हें भी मेरी , फिकर तो होगी ?
ये मान लूँ मैं कैसे , के भूल गया वो
वफ़ा की मेरी कुछ, असर तो होगी
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