अब इंसानॉ के जान की कोई कीमत नहीं रही |
अफ़सोस के आज हमारे बीच मुहब्बत नहीं रही |
रही न अब भक्ति किसी हिन्दू के अन्दर याहां |
और किसी मुस्लिम के अन्दर अकीदत नहीं रही |
मारते रहे यहाँ एक दूसरे को सब काफ़िर कहके |
तो दुसरे के आँख में भी कोई मोरव्वत नहीं रही |
बहाके के खून खुश होते है इंनसान का यहाँ |
यहाँ इन्सान तो हैं मगर इंसानियत नही रही |
फूलों की दूकान पे बिक रहे हैं हथ गोले |
आज इन फूलों की भी कोई कीमत नहीं रही |
एक दुसरे के दिल मे भड़क रही हैं चिंगारियां |
राम सिंह और शेर खान की मुहब्बत नहीं रही |
सियासत के नाम पर लड़ाया जाता है नासिर |
आज कल नेता तो हैं मगर सियासत नहीं रही |
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Friday, September 13, 2013
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