बना के हमें मुर्गा हेमें हलाल करदेंगे |
अब तो हमारे नेता जी कमाल कर देंगे |
आज अपने भाषण में नेता जी ने कहा है |
इलेक्शन के बाद सब को मालामाल करदेंगे |
सब ज्जनते हैं इन नेताओं की फितरत |
कर के वादा इस देश को कंगाल कर दें |
आज की ये सियासत भी कैसी सियासत है |
ऐसा लगता है के नेताओं की ये रियासत है |
मशकूक है हर लीडर का आज किरदार यहाँ |
हर तरफ है फैला हुआ आज भ्रस्टाचार यहाँ |
सयासी कुर्सी पेबैठ के करें सौदा ईमान का |
ज़रासी भी फक्र नहीं इन्हें किसी की जान का |
इनका तो बस सपना है सब माल हमारा हो |
उजाले में हो घर अपना हर सू अँधेरा हो जाए |
चमकती सड़क के नाम पे ये हम से मांगें वोट |
काम निकल जाने पर करें ये दिल पर चोट |
चारों तरफ लूट मची है नही है मोरव्वत कोई |
अपने ही घर लूटें अपना नहीं है लज्ज़त कोई |
आपस में हम लड़ बैठे हैं नेताओं की चक्कर में |
पिस रहें हैं हम दोनों आपस के इस टक्कर में |
बैठे बैठे मैंने सोचा आज कुछ ऐसा कर जाएँ |
नासिर अपना जीवन समाज के नाम कर जाएँ |
सलाम तुझ पर ऐ मोहाफिज़े मिल्लत अस्सलाम |
सलाम तुझ पर ऐ बानिये वहदत अस्सलाम |
सलाम तुझ पर के जिसने जान तक कुर्बान की |
सलाम तुझ पर के जिसने परवाह न की जान की |
जिसके नाम का खौफ दुश्मन पे यूं तारी हुआ |
ऐसा सिपाही जो अपने दुश्मनों पे भारी हुआ |
देश के नौजवानों को देश प्रेम का पाठ पढाया |
देकर अपनी जान मुश्किल घडी से हमें बचाया |
तेरी बहादुरी का चर्चा हम उम्र भर दोहराएंगे |
आने वाली नस्लें तुम्हारी बहादुरी को दोहराएंगे |
कमी रहेगी देश को तुम्हारी ऐ शहीद अब्दुल हमीद |
सलाम करता है तुझे नासिर ऐ शहीद अब्दुल हमीद |
— |
ये सियासत बहुत गन्दा है साहब |
मगर यही क्या करें धंदा है साहब |
कल जिसने बे गुनाहों को मारा था |
अपने ही कबीले का बन्दा है साहब |
अपनी जिम्मेदारियों से ऐसे वो भाग रहे हैं |
कहने पे आयें तो ये कहदें सारी बात |
इन आंसुओं की कोइ जुबांन नहीं है |
अब ये देश आज़ाद होगया है नासिर |
जो चाहो करो ये वो हिन्दुस्तान नहीं है |
अपनी जिम्मेदारियों से ऐसे वो भाग रहे हैं |
के अपनी कुर्सी को ही वो अब त्याग रहे हैं |
आज के इस हादसे ने डरा दिया है सबको |
बरसों से जहां एक साथ लोग बाग रहे हैं |
कुछ लोगों ने फैलाया है ज़हर हमारे बीच ! |
हमारे बीच में छुपे बैठे कुछ नाग रहा है !! |
मशहूर है संस्कृति जहां की दुनिया भर में |
उसी देश में एक दुसरे से सब भाग रहे हैं |
हालात ने उडादी है आँखों की मेरी नींद |
चैन की एक पल केलिए हम जाग रहे हैं |
इस दुनिया में लाख मैं मशहूर हूँ साहेब |
लेकिन वतन से अपने तो दूर हूँ साहेब |
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यूं तो देखाने के लिए मैं हंसता बहुत हूँ |
मगर एक ख़ुशी के लिए तरसता बहुत हूँ |
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पर्देसिओं की ज़िन्दगी भी एक मुसीबत है |
मगर क्या करें हम यही हमारी किस्मत है |
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ख़ुशी की एक घडी के लिए हम सब तरसते हैं |
हमारी आँखों में बस ख्वाब ही ख्वाब बसते हैं |
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मगर इन ख़्वाबों की कोई ताबीर नहीं होती |
ख्वाब के अलावा अपनी कोई जागीर नहीं होती |
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कभी तन्हाई में बीते लम्हे जब याद आते हैं |
आँखों से मेरी नींद और मेरे चैन उड़ जाते हैं |
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सोचता हूँ अक्सर ये ज़िन्दगी कैसे गुज़रती है |
हमारी ज़िन्दगी भी क्या खेल हम से करती है |
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यूं तो मिलना बिछड़ना दस्तूर है ज़माने का |
मगर जल के मर जाना किस्मत है परवाने का |
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पर्देसिओं बीवी के चेरे से उसका दर्द यान होता है |
सोहागन हो के भी विधवा सा गुमान होता है |
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दुनिया में ऐसा भी नाकोई मजबूर हो यारब |
कोई भी इस तरह अपनों से न दूर हो यारब |
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याद आता है बिछड़ने की घडी मुझको |
बहुत बेचैन करदेता वो घडी मुझ को |
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Friday, September 13, 2013
हालाते ज़िन्दगी
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