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Friday, September 13, 2013

कुछ चुनिन्दा रचनाएं

मैं शर्मिन्दह हूँ ऐसी आज़ादी पर
अपने कौम की ऐसी बर्बादी पर
इस देश में कोई आज़ाद नहीं
कौन है जिस पर उफ्ताद नहीं
हर शख्स यहाँ मासूम बना है
पर सब का हाथ ख़ूँ से सना है 
इंसानियत यहाँ पर शर्मिंदा है 
इंसानियत का कातिल क्यूँ ज़िनदा है 
कौन सुने सच्चाई की बात
लगाए बैठे हैं यहाँ सारे घात
चैन से कोई यहाँ सोता नहीं है 
खुलके यहाँ कोई रोता नहीं है 
हर बेटी की इज्ज़त खतरे में है
जैसे कोई बीच अंगारे में है 
किस से बांटे हम अपना ग़म
सबकी आखें यहाँ पे है नम
संभाले कौन हालत को नासिर 
बचाते हैं सब इस बात से नासिर
इन चिरागों से अपने घरों को सजाया जाय
किसी के घर को चिरागों से न जलाया जाए
मज़हब हमें सिखाता है फ़क़त प्यार बांटना 
मज़हब की आड़ में नफरत न फैलाया जाए
इस्लाम ने फ़क़त दरसे अखुव्वत दिया हमें
अब राम के नाम पे धब्बा न लगाया जाए
बहुत सियासत होगया मज़हब के नाम पर
अब सिर्फ मुहब्बत का पाठ पढ़ाया जाए
ये सियासी पार्टियां हमारी दुश्मन हैं नासिर 
ऐसी पार्टिओं को ही क्यूँ न भगाया जाए
अपनि तहजीब को यूं नीलाम नहीं होने देंगे
फिर अपने वतन में क़त्लेआम नहीं होने देंगे
हमारे मुल्क की रफ़्तार हमारी जीनत हैं 
यहाँ कभी हम ट्रेफिक जाम नहीं होने देंगे
हमारी एकता ही हमारी तहजीब है लोगो
इस एकता को कभी हम बदनाम नहीं होने देंगे
तुम्हे करनी है सियासत तो भले करो तुम मगर
हम अपनी एकता को कभी नीलाम नहीं होने देंगे
हिलाके रख् देंगे दुश्मनों के ऐवानों को हम
मगर इसका दरहम बरहम नेजाम न होने देंगे
हल कर लेंगे खुद ही अगर हो कमी किसी में 
मगर अपने घर को सराए आम नहीं होने देंगे
अपनी रंजिशों को खुद ही हम दूर कर लेंगे
मगर अपने मुल्क को वेयात्नाम नहीं होने देंगे
अगर पड़ी ज़रुरत तो खून से नहला देंगे इसे
मगर अपने देश को बदनाम नहीं होने देंगे 
खुदा करे हमारे मुक़द्दर का सूरज चमकता रहे
इस सूरज का कभी हम शाम नहीं होने देंगे
बड़ी मुश्किलों से मिली है हमें येआज़ादी नासिर 
फिर अपने देश को कभी गुलाम नहीं होने देंगे 
चलो आज मिलके ये वादा करें हम ,,नासिर
भ्रस्ट नेताओं को कभी बेलगाम नहीं होने देंगे
इस तरह हर ख़ुशी से नाता मैं तोड़ आया हूँ
जिस दिन से अपने घर को मैं छोड़ आया हूँ
परदेस का ज़िन्दगी भी भला कोई ज़िन्दगी है ?
असली ज़िन्दगी तो मैं बहुत पीछे छोड़ आया हूँ
जलाके रख दिया चिराग़ घर के सामने मैं ने 
और हवा के रुख को अपनी तरफ मोड़ आया हूँ
वफ़ा की चाह में मैं भटकता रहा दर बदर नासिर
देखा जहां ज़रा सी मुहब्बत मैं वहाँ दौड़ आया हूँ
लूटा है हर किसी ने हमें नया ख्वाब देखा कर
कभी चश्मा देखा कर कभी तालाब देखा कर
सुनहरे बाग़ के सपनों में पहले खूब घुमाया
और बह्ला दिया बहुत दूर से गुलाब देखा कर
फिर बीत गई बरसात मगर तुम नहीं आये
करनी थी तुम से बात मगर तुम नहीं आये
सपनों के इस आँगन में देखा तुम्हे अक्सर
हमें मिलन था कल रात मगर तुम नहीं आये
जीवन के इस मोड़ पे तुम छोड़ गए तनहा 
रस्ता देखा दिन रात मगर तुम नहीं आये
न तुम आये न तुम्हारी कोई खबर ही आई
आँखों से होती रही बरसात मगर तुम नहीं आये
तुम्हारे इंतज़ार में नासिर बीत गया मौसम
सब मेरे सो गए जज़्बात मगर तुम नहीं आये

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