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Friday, September 13, 2013

बेटी की वोदाई

घर से बाबुल की में तो सफ़र में चली
घर हुआ अजनबी वह जहां  में पली
जब बिचादने की मेरी वो आई घड़ी
अपने घर में ही पराया सी लगने लगी
क्या बताऊँ अपनि विदाइ का हाल
सबकी आँखों में आंसू का फैला था जाल
मेरी आँखों से आँसू फिर रुक न सके
मुड़ के जो देखा फिर माँ ने मुझे
थे पराये मगर लोग अपने लगे
खुश रहने की दुआ सारे देने लगे
घर बाबा के आखिर में छोड़ना पड़ा
अपनी सहेलियों से मुंह मोड़ना पड़ा
फिर चिली में एक ऐसे जहां के लिए
अजनबी थी मैं बिल्कुल वहाँ के लिए
कहते हैं के मैका बेटी का होता नहीं
मगर पराये के लिए तो कोई रोता नहीं
फिर क्यों विदा इ पे मेरे सबसे रोने लगे
ग़मज़दा क्यों मेरी वजह से होने लगे
बाबा ने वक़्त रुखसत यह मुझसे कहा
सलामत रहे मेरी बेटी वहाँ तू सदा
खुशियां चूमे कदम तो जो,जाए जहां
दुनिया भर की खुशियां दे मालिक वहाँ
सारी सखियाँ फिर गैरों से तकती रही
ऐसा लगता था जीसे के मैं मर ही जाऊँ वहीं
बचपन से था रिश्ता सब टूट गया
मेरे बचपन का घर मुझ से छूट गया
ये रीत है इसको निभाना पड़ेगा
घर से बेटी को बाबुल के जाना पड़ेगा
अपने बाबुल के घर की मैं धुवां हो गई 
ज़िन्दगी मेरी नासिर फिर रवां हो गई 

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