Nasir Siddiqui
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Wednesday, December 14, 2016
मैंने शेरों के परदे में ग़मको बहुत छुपाया है
मैंने शेरों के परदे में ग़मको बहुत छुपाया है
अक्सर ग़ज़लों ने मुझको बहुत रुलाया है
छुप के अब कोहसारों में रोता हूँ मैं ज़ार ज़ार
शहर के रफ़ीक़ों ने ,मुझको बहुत रुलाया है
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