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Wednesday, December 14, 2016

लो ढल गया आफताब अब क्या होगा

लो ढल गया आफताब अब क्या होगा
कुछ तो कहिये जनाब अब क्या होगा
एक मुद्दत से मेरा चाँद बादल में छुपा था
खुल गया उसका नक़ाब अब क्या होगा 
छोड़ कर तेरी गली जाएँ तो जाएँ कहाँ 
तू ही बता , तेरा जवाब अब क्या होगा
कल तलक जो के गुड़ियों से खेला करती
अब आगया उस पे शबाब अब क्या होगा
दिल खोल के पिला आज मुझे ऐ साक़ी
छोड़ दे आज का हिसाब अब क्या होगा

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